हम अक्सर बहुत लोगों से सुनते हैं कि ब्रह्मांड से जो भी मांगते है वह हमेशा मिलता है, बड़े बड़े ग्रन्थ किताबें ऐसी शिक्षाओं से भरे हुए हैं। आजकल तो विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम भी चल रहे हैं जो आपको ब्रह्मांड से कैसे अपनी इच्छाएं मनवाए इसका पूरा प्रशिक्षण दिया जाता है, कुछ लोग तो इन्टरनेट और वीडियो के माध्यम से भी प्रशिक्षण दे रहे हैं।
इस लेख के माध्यम से कुछ अनुभवः आपसे साँझा कर रहा हूँ, यह बात एकदम सत्य है ” हम ब्रह्मांड से जो भी मांगते है वह सदैव प्राप्त होता है ” अपितु ब्रह्मांड से ऊर्जाएं तत्पर रहती है आपकी माँग की सकारात्मक तरंग जाग्रत हुई नहीं उसी क्षण ब्रह्मांड अपना कार्य प्रारंभ कर देता है।
यदि यह सारी प्रक्रिया इतनी ही सरल है तो फिर क्यों हम अनुभव नही कर पाते है ? क्यों हमारी मनोकामना का फल नहीं मिलता है ?
क्यों हमारी कोई भी इच्छा पूर्ति नहीं होती है ?
क्या कोई विशेष पूजापाठ किसी ख़ास विधि से ब्रह्मांड मानता है ?
क्या हमारी इछाओ की आवाज़ ब्रह्मांड तक नहीं पहुँच रही है ?
ऐसे ही तरह तरह के प्रश्न मन मे उठतें है जिनका हल शायद यह लेख कर पाएगा।
ब्रह्मांड अत्यन्त सरलता से ही कार्य करता है कोई पूजापाठ कोई विधि कोई आयोजन नहीं है जिसका ही प्रतिउत्तर ब्रह्मांड की ऊर्जाएं करती है। पहले भी एक लेख मे प्रार्थना और मंत्रों के विज्ञानं मे मैंने आपको बतलाया था किसी भी ख़ास भाषा या मन्त्र की ब्रह्मांड मे पहुँच हो ऐसा नहीं है सच्ची भावनाओं और अटल विश्वास भले ही शिशु का हो ऊर्जा निर्मित हुई और ब्रहांड ने उस पर कार्य करना ही है।
हमारी इच्छाओ की तरंग भी ब्रह्मांड तक इतनी ही सरलता से पहुँचती है और तत्क्षण ही ब्रह्मांड की ऊर्जाएं उनको पूरा करने मे लग जाता है बस कुछ चूक हम न करें तो फल प्राप्त हो जाए। हमारी भावना भी सच्ची होती है इच्छाएं भी सकारात्मक होती है लेकिन हमारी शंकाय और भय के विचार परस्पर दौड़ रहे होते हैं और ये विचार इतने हावी हो जाते हैं कि प्रार्थना की ऊर्जा को क्षीण कर देतें है। इसीलिये ध्यान का महत्व चहुँओर बतलाया गया है, जब हम ध्यान की अवस्था को पा लेते हैं तो विचार को देख सकते है और बदल भी सकते है।
ध्यान के विषय मे पहले भी मैंने लेख दिया है अपनी चेतना को आती जाती स्वांस पर टिकाना है और मस्तिष्क को कार्य मिल जाता है फिर ना कोई विचार आपकी जागृति के बाहर होगा और ना ही कोई भय आपकी ऊर्जा को क्षीण कर सकता है।
लगातार हथोड़े की चोट भी बड़े बड़े से पहाड़ को काट डालती है
महान संत कबीरदास जी ने कहा है
‘करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान , रसरी आवत जात सु सिल पर परत निशान।’
हमें भी अपनी विचारों को सकारात्मक दिशा मे रखने का प्रयास करना है , ध्यान की अवस्था हो जाने के बाद तो हम संसार के साक्षी रेह जाते है तब सहज ही विचार भाव को देखा और परिवर्तित किया जा सकता है।
आईये हम सभी ब्रह्मांड की शक्तियों का अनुभव करें अपनी मनोकामनाओ को पूरा करे मिलकर इस संसार को एक बेहतर सकारात्मक प्रेममय अनुभूतियों से भरपूर करें।
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